बड़े दिन बाद खोपड़ी ठनकी और क्रोध का एहसास हुआ... लेखनी क्रोध को व्यक्त करने का सर्वश्रेष्ठ माध्यम है.. बस लेखनी उठाई और फिर कुछ करने की जरूरत महसूस नही हुई... बस धारा प्रवाह निकली कुछ पंग्तियां जो मेरे जीवन में लिखी गई पहली कविता भी है ... ये स्वरचित कविता अब आपके लिये है... इनमें जिन जीव जंतुओ का उल्लेख है वो आप मैं कोई भी हो सकता है..
वर्तमान की सारी ईटें गिरी भरभराकर
बंदर अब गुलाटी छोड़ कर चल रहा है रेंगकर
मैने शेर को मिमयाते
कुत्ते को दहाड़ते देखा है
मैंने गधे को गुलाब जामुन खाते देखा है...
शक्तिहीन रहा जो हिरण वो अब अकड़ने लगा है
खरगोश भी अब पहलवानी में हाथ धोने लगा है
चीता अब गीदड़ से डरता है
बाघ अब बिल में रहता है
मैने भरी दुपहरी चमगादड़ को आकाश में इठलाकर उड़ते देखा है
मैंने गधे को गुलाब जामुन खाते देखा है...
अजगर अब चौकड़ियां भरता है
हाथी थप्पड़ से मरता है
चूहा अब नाग से अड़ता है
बब्बर अब युद्ध से डरता है
मैने घोड़े को भी कछुए से हारते देखा है
मैंने गधे को गुलाब जामुन खाते देखा है...
लकड़बग्घा अब शेर को धोने लगा है
मुर्गा अब तड़के सोने लगा है
सूअर अब जंगल का राजा है
बाजो का बज गया बाजा है
मैनें मछली को पानी में मगरमच्छ से पांव दबवाते देखा है
मैंने गधे को गुलाब जामुन खाते देखा है...
वर्तमान की सारी ईटें गिरी भरभराकर
बंदर अब गुलाटी छोड़ कर चल रहा है रेंगकर
मैने शेर को मिमयाते
कुत्ते को दहाड़ते देखा है
मैंने गधे को गुलाब जामुन खाते देखा है...
शक्तिहीन रहा जो हिरण वो अब अकड़ने लगा है
खरगोश भी अब पहलवानी में हाथ धोने लगा है
चीता अब गीदड़ से डरता है
बाघ अब बिल में रहता है
मैने भरी दुपहरी चमगादड़ को आकाश में इठलाकर उड़ते देखा है
मैंने गधे को गुलाब जामुन खाते देखा है...
अजगर अब चौकड़ियां भरता है
हाथी थप्पड़ से मरता है
चूहा अब नाग से अड़ता है
बब्बर अब युद्ध से डरता है
मैने घोड़े को भी कछुए से हारते देखा है
मैंने गधे को गुलाब जामुन खाते देखा है...
लकड़बग्घा अब शेर को धोने लगा है
मुर्गा अब तड़के सोने लगा है
सूअर अब जंगल का राजा है
बाजो का बज गया बाजा है
मैनें मछली को पानी में मगरमच्छ से पांव दबवाते देखा है
मैंने गधे को गुलाब जामुन खाते देखा है...
Kya khoob kahi krodhi bhai
ReplyDeleteMaine bhi kuch aisa hi dekha hai
Ghade ko Admi se kaam lete dekha hai,
Machli ko Zukham Dekha hai,
Babool par Aam dekha hai,
Ab or kya kahu Krodhi Bhai,
Band ankho se ye sara anjaam dekha hai.
क्या बात है कुलदीप जी मजा आ गया
Deleteवाह दोस्त... वाह.. वर्ड वेरीफिकेशन हटाओ..
ReplyDeleteशक्रिया कुलदीप जी, सुमन जी , माननीय भारतीय नागरिक और हरीश जी मुझे बिलकुल अंदाजा नही था कि प्रबुद्ध जनो को पसंद आने लायक कुछ लिखा है उत्साह वर्धन के लिये साधुवाद...
ReplyDeletefine!
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति| धन्यवाद|
ReplyDeleteरचना अच्छी है लेकिन काला रंग आखों को चुभता है।
ReplyDeleteवाह-वाह - बहुत सुंदर - जबरदस्त - हार्दिक बधाई
ReplyDeleteक्रोधी जी..कहते हैं क्रोध में आदमी अपना विवेक खो बैठता है..पर आपने बराए तखल्लुस ऐसा कुछ नहीं होने दिया..बल्कि विवेक से समाज की विषमता को एक आइना दिया है...
ReplyDeleteक्योंकि यह आपकी पहली रचना है इसलिए अधिक मशवरे देना उचित नहीं..पर आगे ख्याल रखें इस लिए बताना चाहूँगा कि जब छंद में लिख रहे हैं तो तुकान्तकी बनाए रखें..मसलन मैने घोड़े को भी कछुए से हारते देखा है
मैंने गधे को गुलाब जामुन खाते देखा है...में हारते और खाते थोडा जाच नहीं रहा..हालाकि विचार प्रबल है. बाक़ी मोटे तौर पे तो बढ़िया विचार की बढ़िया अभिव्यक्ति दी है आपने. मेरी शुभकामनायें!
वाह... उत्तम प्रस्तुति...
ReplyDeleteहिन्दी ब्लाग जगत में आपका स्वागत है, कामना है कि आप इस क्षेत्र में सर्वोच्च बुलन्दियों तक पहुंचें । आप हिन्दी के दूसरे ब्लाग्स भी देखें और अच्छा लगने पर उन्हें फालो भी करें । आप जितने अधिक ब्लाग्स को फालो करेंगे आपके अपने ब्लाग्स पर भी फालोअर्स की संख्या बढती जा सकेगी । प्राथमिक तौर पर मैं आपको मेरे ब्लाग 'नजरिया' की लिंक नीचे दे रहा हूँ आप इसके आलेख "नये ब्लाग लेखकों के लिये उपयोगी सुझाव" का अवलोकन करें और इसे फालो भी करें । आपको निश्चित रुप से अच्छे परिणाम मिलेंगे । शुभकामनाओं सहित...
http://najariya.blogspot.com/2011/02/blog-post_18.html