Sunday, December 4, 2011
Thursday, April 21, 2011
जी करता है मैं भी एक हरामखोर हो जाउं..
आज दिमाग नें फिर कचोटा और एक और कृति बाहर आई .. इस कृति का प्रादुर्भाव हमारे आस पास से हुआ है.. ये कविता ना होकर जीवन परिचय ज्यादा है.. इस कविता को लिखने के पीछे का उद्देश्य सभी हरामखोरो को धन्यवाद देना है जिन्होने मेरे अंतर मन को झगझोरा..
जी करता है मैं भी एक हरामखोर हो जाउं
आंख रगड़ूं, हाथ मलूं, और जांघो को खुजलाउं
उस थाली में छेद मैं करदू जिसमें खाना खाउं
जी करता है मै भी एक हरामखोर हो जाउं
ये भी खाउं, वो भी खाउं सबको मैं गरियाउं
काम छोड़ कर सब करू मैं फोकट तनख्वाह पाउं
जी करता है मैं भी एक हरामखोर हो जाउं
दिन भर सोउं, गाने गाउं और बाल सहलाउं
मेहनत कतरे भर की न करू बस मजे उड़ाउं
जी करता है मैं भी एक हरामखोर हो जाउं
कामचोर सा पड़ा रहूं हरकत नहीं दिखाउं
किसी से सर, किसी से हाथ और किसी से पांव दबवाउं
जी करता है मैं भी एक हरामखोर हो जाउं
मस्त रहूं मदमस्त रहूं मै बेशर्मी दिखलाउं
इज्जत नहीं करू किसी की खुद में ही खो जाउं
जी करता है मैं भी एक हरामखोर हो जाउं
स्वाभिमान को ताक पे रख दूं
नंगा डोल बजाउं
जी करता है मैं भी एक हरामखोर हो जाउं
राहुल देव अवस्थी "क्रोधी"
Wednesday, February 16, 2011
मैंने गधे को गुलाब जामुन खाते देखा है
बड़े दिन बाद खोपड़ी ठनकी और क्रोध का एहसास हुआ... लेखनी क्रोध को व्यक्त करने का सर्वश्रेष्ठ माध्यम है.. बस लेखनी उठाई और फिर कुछ करने की जरूरत महसूस नही हुई... बस धारा प्रवाह निकली कुछ पंग्तियां जो मेरे जीवन में लिखी गई पहली कविता भी है ... ये स्वरचित कविता अब आपके लिये है... इनमें जिन जीव जंतुओ का उल्लेख है वो आप मैं कोई भी हो सकता है..
वर्तमान की सारी ईटें गिरी भरभराकर
बंदर अब गुलाटी छोड़ कर चल रहा है रेंगकर
मैने शेर को मिमयाते
कुत्ते को दहाड़ते देखा है
मैंने गधे को गुलाब जामुन खाते देखा है...
शक्तिहीन रहा जो हिरण वो अब अकड़ने लगा है
खरगोश भी अब पहलवानी में हाथ धोने लगा है
चीता अब गीदड़ से डरता है
बाघ अब बिल में रहता है
मैने भरी दुपहरी चमगादड़ को आकाश में इठलाकर उड़ते देखा है
मैंने गधे को गुलाब जामुन खाते देखा है...
अजगर अब चौकड़ियां भरता है
हाथी थप्पड़ से मरता है
चूहा अब नाग से अड़ता है
बब्बर अब युद्ध से डरता है
मैने घोड़े को भी कछुए से हारते देखा है
मैंने गधे को गुलाब जामुन खाते देखा है...
लकड़बग्घा अब शेर को धोने लगा है
मुर्गा अब तड़के सोने लगा है
सूअर अब जंगल का राजा है
बाजो का बज गया बाजा है
मैनें मछली को पानी में मगरमच्छ से पांव दबवाते देखा है
मैंने गधे को गुलाब जामुन खाते देखा है...
वर्तमान की सारी ईटें गिरी भरभराकर
बंदर अब गुलाटी छोड़ कर चल रहा है रेंगकर
मैने शेर को मिमयाते
कुत्ते को दहाड़ते देखा है
मैंने गधे को गुलाब जामुन खाते देखा है...
शक्तिहीन रहा जो हिरण वो अब अकड़ने लगा है
खरगोश भी अब पहलवानी में हाथ धोने लगा है
चीता अब गीदड़ से डरता है
बाघ अब बिल में रहता है
मैने भरी दुपहरी चमगादड़ को आकाश में इठलाकर उड़ते देखा है
मैंने गधे को गुलाब जामुन खाते देखा है...
अजगर अब चौकड़ियां भरता है
हाथी थप्पड़ से मरता है
चूहा अब नाग से अड़ता है
बब्बर अब युद्ध से डरता है
मैने घोड़े को भी कछुए से हारते देखा है
मैंने गधे को गुलाब जामुन खाते देखा है...
लकड़बग्घा अब शेर को धोने लगा है
मुर्गा अब तड़के सोने लगा है
सूअर अब जंगल का राजा है
बाजो का बज गया बाजा है
मैनें मछली को पानी में मगरमच्छ से पांव दबवाते देखा है
मैंने गधे को गुलाब जामुन खाते देखा है...
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